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निर्देश देने के बाद उसके पिता बाहर सड़क पर खड़े उसके सब भाइयों की ओर मुड़ गए।

      “आप को क्या लगता है वो हमें चुन लेंगें?” दुर्स ने पूछा, जो तीनों भाईयों में सबसे छोटा और थोर से तीन साल बड़ा था।

      “नहीं चुनना उनकी बेवकूफी होगी,” उसके पिता ने कहा। “ इस वर्ष उनके पास आदमियों की कमी हैं। यह उनके लिए बहुत ज़रूरी है नहीं तो वे आने की जहमत ना उठाते। बस, तुम तीनों सीधे खड़े रहो, अपनी ठोड़ी को ऊपर और छाती को बाहर की ओर रखो। उनकी आँखों में सीधे मत देखना और ना ही कहीं दूर। मजबूत और विश्वास से भरे दिखो। किसी तरह की कमजोरी मत दिखाना। यदि तुम राजा की सेना में जाना चाहते हो, तो ऐसे दर्शाना जैसे तुम पहले से ही सेना में आ चुके हो।”

      “हाँ, पिताजी,” उसके तीनों लड़कों ने, अपनी जगह लेते हुए एक ही बार में जवाब दिया।

      वो मुड़े और थोर को घूरने लगे।

      “तुम अभी तक यहाँ क्या कर रहे हो?” उन्होंने पूछा। “अंदर जाओ!”

      थोर वहीँ खड़ा था, परेशान। वह अपने पिता की आज्ञा का अवज्ञा नहीं करना चाहता था, लेकिन उसका उनसे बात करना आवश्यक था। वह बहस की सोच रहा था और उसकी दिल की धड़कन तेज हो गई थी। उसने फैसला लिया, पिता की आज्ञा का पालन करना ठीक रहेगा, पहले वो तलवार ले आएगा और फिर अपने पिता का सामना करेगा। एकदम से अवज्ञा करने से कुछ हासिल नहीं होगा।

      थोर भाग कर घर में घुस गया, पिछवाड़े से हो कर सीधे हथियार वाले बाड़े में गया। वहां उसे अपने भाईयों की तीनों तलवारें मिल गई थी, इन तलवारों की मुठियाँ चांदी से सजी हैं, सभी कुछ बहुत खूबसूरत था, ये सब मूल्यवान उपहार थे जिसे पाने के लिए उसके पिता ने सालों मेहनत की थी। उसने वो तीनों तलवारें उठा ली, उनके वजन से वो हमेशा की तरह आश्चर्यचकित था और उन्हें लिए वो घर से बाहर आ गया।

      वो भाग कर अपने भाईयों के पास पहुंचा, प्रत्येक को एक-एक तलवार सौंपी, फिर अपने पिता की ओर मुड़ा।

      “ये क्या, पॉलिश नहीं की?” ड्रेक ने कहा।

      उनके पिता ने नाराज़गी से उसकी और देखा, इसे पहले वो कुछ कहते, थोर बोल पड़ा।

      “पिताजी,

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