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उसके पिता थोर के तीनों बड़े भाइयों पर अपना पूरा ध्यान और प्यार लुटाते थे। सबसे बड़ा भाई १९ का था और बाकी दोनों शायद १-१ साल छोटे थे और थोर उन लोगों से कम से कम तीन साल छोटा था। तीनों की उम्र एक जैसी थी इसीलिए थोर से बिलकुल अलग और एक जैसे ही दीखते भी थे और शायद यही वजह रही होगी कि वे तीनों थोर के अस्तित्व तक को नहीं स्वीकारते थे।

      और वे लोग उस से लम्बे, चौड़े और मजबूत थे, और थोर जानता था कि वो उन लोगों से कम नहीं है फिर भी अपने आप को बहुत छोटा महसूस करता था। उसके पिता ने इन बातों को सुलझाने का कभी कोई प्रयास नहीं किया — वो तो बस इन सब बातों के खूब मज़े लेता था — जहाँ एक और थोर के तीनों भाई प्रशिक्षण लेते वहीँ दूसरी ओर थोर को बस भेड़ें चराने और हथियारों को तेज करने का काम दिया जाता। यह कोई कही जाने वाली बात नहीं थी कि थोर को अपनी पूरी ज़िन्दगी यूं ही अपने भाईयों को महान कार्य करते देख गुज़ारनी होगी, यह तो बस समझने वाली बात थी। यदि उसके पिता और भाईयों के वश में होता तो वे बस यही चाहते थे कि वो वहीँ रह कर बस परिवार की सेवा करते रहे, उसके भाग्य में होता तो ये गाँव उसको निगल जाता।

      अविश्वसनीय मगर इससे भी बद्तर स्थिति यह थी कि थोर को अब लगने लगा था कि उसके भाईयों को अब वह संकट लगने लगा है और शायद उससे नफरत भी करते थे। थोर यह सब अब उनकी हर एक दृष्टि में, यहाँ तक कि हर इशारे में देख पा रहा था। यह कैसे संभव है उसे समझ में नहीं आ रहा था, लेकिन वो उनके मन में एक तरह का भय या ईर्ष्या जैसा कुछ पैदा कर रहा था। यह सब इसीलिए था क्योंकि वह शायद उनसे हट कर था, वह उन से अलग दिखता था या फिर उसके बात करने का अंदाज़ उन लोगों जैसा नहीं था; वो तो उनके जैसे कपडे भी नहीं पहनता था, उसके पिता सबसे बढ़िया बैंगनी और लाल रंग के वस्त्र, भव्य अस्त्र उसके भाईयों के लिए बचा कर रखते थे, जबकि थोर तो बस भद्दे किस्म के चीथड़े पहनता

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