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       अध्याय आठ

       अध्याय नौ

       अध्याय दस

       अध्याय ग्यारह

       अध्याय बारह

       अध्याय तेरह

       अध्याय चौदह

       अध्याय पंद्रह

       अध्याय सोलह

       अध्याय सत्रह

       अध्याय अठारह

       अध्याय उन्नीस

       अध्याय बीस

       अध्याय इक्कीस

       अध्याय बाईस

       अध्याय तेईस

       अध्याय चौबीस

       अध्याय पच्चीस

       अध्याय छब्बीस

       अध्याय सत्ताईस

       अध्याय अट्ठाईस

      “ताज पहनने वाले सिर का असहज होना निहित है।”

      विलियम शेक्सपियर

      हेनरी चतुर्थ, भाग द्वितीय

      रिंग के पश्चिमी राज्य के निचले इलाके की सबसे ऊंची पहाड़ी पर उत्तर की ओर चढ़ते सूरज को देखता हुआ एक लड़का खड़ा था। दूर तक फैली हरी पहाड़ियाँ, जो बहुत सी घाटियों और चोटियों की कभी गिरती हुयी और कभी ऊँट के कूबड़ की तरह उठी हुयी एक श्रृंखला जैसी थी, जहाँ तक उसकी नज़र जाती वह उन्हें देख रहा था। लड़के का मनोभाव ऐसा था मानो सुबह की धुंध को छूता हुआ, उन्हें प्रकाशमान करता हुआ, जलती सूरज की नारंगी किरणें, जैसे रौशनी को जादूई बना रहा हो। वह शायद ही कभी इतनी जल्दी उठा था या घर से कभी इतनी दूर निकल आया हो — और यह जानते हुए कि उसे अपने पिता का प्रकोप झेलना होगा उसने कभी भी इतनी चढ़ाई नहीं की थी। लेकिन आज के दिन वो बेपरवाह था। आज के दिन उसने अपने ऊपर लाखों नियमों और कार्यों को अनदेखा किया जिन्होंने उसे चौदह वर्षों से दबा रखा था। लेकिन आज का दिन हट कर था। आज के दिन उसका भाग्य बदल गया था।

      दक्षिणी प्रांत के पश्चिमी राज्य के मैकलियोड कबीले का लड़का थोर्ग्रिन जिसे सभी बस थोर के नाम से जानते थे — चार पुत्रों में से सबसे छोटा और अपने पिता का सबसे कम पसंदीदा इस दिन की प्रतीक्षा में ही पूरी रात जागा था। वह

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